हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "मन ला याहज़ुर अल-फकीह" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الصادق علیه السلام:
رَأَيْتُ اَلْمَعْرُوفَ لاَ يَصْلُحُ إِلاَّ بِثَلاَثِ خِصَالٍ تَصْغِيرِهِ وَ سَتْرِهِ وَ تَعْجِيلِهِ فَإِنَّكَ إِذَا صَغَّرْتَهُ عَظَّمْتَهُ عِنْدَ مَنْ تَصْنَعُهُ إِلَيْهِ وَ إِذَا سَتَرْتَهُ تَمَّمْتَهُ وَ إِذَا عَجَّلْتَهُ هَنَّأْتَهُ وَ إِنْ كَانَ غَيْرُ ذَلِكَ مَحَقْتَهُ وَ نَكَّدْتَهُ
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) ने फ़रमायाः
मेरी राय में, तीन गुणों को छोड़कर भलाई फलदायी नहीं होती है और वे तीन गुण निम्नलिखित हैं:
(1) अच्छाई छोटा समझना (2) उसे छिपाकर रखना (3) जल्दी अंदाम देना। क्योंकि अगर इसे छोटा समझा जाए तो जिस पर शुभ कार्य किया जा रहा है उस पर बड़ा उपकार होता है और यदि छिपाकर रखा जाए तो उसे कमाल तक पहुंचा दिया और यदि शीघ्रता से किया जाए है तो वह सुखमय हो जाता है। और यदि वह इन तीन गुणों से विचलित हो जाए, तो मानो उसने उसे नष्ट कर दिया है और उसे महत्वहीन बना दिया है।
मन ला याहज़ुर अल-फकीह, अनुवाद बलाग़ी और ग़फ़्फ़ारी, भाग 2, पेज 361